कथा प्रसंग

SHIV PURAN KATHA

शिव महापुराण कथा

शिव पुराण 18 पुराणों में से एक है इसमें शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। साथ ही भगवान शिव की लीला कथाओं और इनकी पूजा विधि सहित शिवलिंग की उत्पत्ति और शिव भक्ति से संबंधित कथाएं हैं। शिव पुराण का पाठ आप कभी भी शुभ मुहूर्त में आयोजन कर सकते हैं। शिव पुराण कथा श्रवण करने से व्यक्ति को भय से मुक्ति मिलती है, भोग और मोक्ष दोनों की ही प्राप्ति होती है, मृत्यु का भय नहीं सताता और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

श्रीमद भागवत कथा

श्रीमद भागवत कथा कथा सुनना और सुनाना दोनों ही मुक्तिदायिनी है तथा आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखाती है। भागवत पुराण को मुक्ति ग्रंथ कहा गया है, इसलिए अपने पितरों की शांति के लिए इसे हर किसी को आयोजित कराना चाहिए। श्रीमदभागवत कथा सुनने से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है ।

नर्मदा पुराण कथा

नर्मदा जी वैराग्य की अधिष्ठात्री  है।  नर्मदा पुराण कथा करवाने से समस्त पुण्यो की प्राप्ति होती है साथ ही मन वैराग्य से ओत प्रोत हो जाता है। नर्मदा तट पर ही सिद्दी प्राप्त होती है| ब्रम्हांड के समस्त देव, ऋषि, मुनि, मानव (भले ही उनकी तपस्या का क्षेत्र कही भी रहा हो) सिद्दी प्राप्त करने के लिए नर्मदा तट पर अवश्य आये है। नर्मदा तट पर सिद्धि पाकर ही वे विश्व प्रसिद्ध हुए। नर्मदा की कृपा से मानव अपने कार्य क्षेत्र में ,एक बार उन्नति के शिखर पर अवश्य जाता है। नर्मदा मनुष्यों को देवत्व प्रदान कर अजर अमर बनाती हैं। नर्मदा जी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और तेरह दिनों में पूर्ण होती है। 

भक्तमाल कथा

भक्तमाल कथा में भगवान् के प्रति भक्तों का समर्पण और उनकी दिव्य भक्ति का दर्शन हैं । भक्तमालाओं की मूल प्रेरणा इस धार्मिक भावना में थी कि भक्त कीर्तन भी हरिकीर्तन है। इस बिन्दु से आरम्भ होकर विविध प्रकार की घटनाओं से युक्त होकर ये भक्तों की कथाएँ अलौकिक तत्वों से युक्त होते हुए भी भक्तों की जीवन-कथा प्रस्तुत करने में प्रवृत्त हुई।

राम कथा

राम नाम की महिमा अनंत है. रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसका बहुत ही सुंदर वर्णन किया है. राम नाम से बड़ा कुछ भी नहीं. यह सबसे ऊपर है, सब देवों से बड़ा. यहां तक कि जिन देवी देवताओं के अंदर किसी को वरदान देने की क्षमता है, यह राम नाम उन देवों को भी वरदान देता है. यहां तक की राम स्वयं अपने नाम का ही अनुसरण करते हैं. नाम के पीछे-पीछे ठीक उसी तरह चलते हैं जैसे स्वामी के पीछे सेवक. सुनने समझने में नाम और नामी एक ही प्रतीत होतें हैं, पर वास्तव में हैं दोनों अलग और उनमें प्रीति भी स्वामी और सेवक जैसी है.